” इंसान का जिस्म “

इंसान का जिस्म क्या है ?
जिस पर इतराता है जहां ,
बस एक मिट्टी की इमारत ,
एक मिट्टी का मकां ,
खून तो गारा है इसमें
और ईंटे है हड्डियां ,
चंद सांसों पर खड़ा है ,
यह ख्याली आसमां ,
मौत की पुरजो़र आंधी
इससे जब टकराएगी ,
जितनी भी महंगी हो ये इमारत
टूटकर बिखर जाएगी ।

Published by Beingcreative

A homemaker exploring herself!!

12 thoughts on “” इंसान का जिस्म “

  1. सत प्रतिशत सत्य कहा है दीदी
    किसी ने बहुत सही कहा था “जाते ही शमशान में, मिट गयी सब लकीर पास पास ही जल रहे थे, राजा और फ़क़ीर”

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